गुरुवार, 25 जनवरी 2024

प्रकृति द्वारा मनुष्य की योग्यता और क्षमता का चयन ।

 अडोल्फ हिटलर के अनुसार ,प्रकृति व्यक्ति की प्रजनन क्षमता को कम नहीं करती अपितु वह तो उत्पन्न व्यक्ति के अस्वस्थ और नकारा होने पर नष्ट करती है ।अस्तित्व के संघर्ष में जो जिंदा बच गया प्रकृति उसका बार बार निरीक्षण ,परिछन करके समर्थ और योग्य बनाती है ।ताकि प्रजनन प्रक्रिया को जारी रखे ।योग्यतम के चुनाव की यह प्रक्रिया अनवरत जारी रहती है ,व्यक्ति के प्रति प्रकृति के इस व्यवहार से साफ होता है कि प्रकृति जाति और वर्गों की शक्ति की रक्षा करती है और उसे उत्कृष्टता की श्रेष्ठतम की सीढ़ी तक पहुँचा देती है ।।         प्रकृति के इस प्रकार के संबंध में संख्या में न्यूनता का अर्थ शक्ति का संवर्द्धन और आखिरकार जाति का उन्नयन निहित है ।यदि व्यक्ति स्वंय जनसंख्या को कम करना शुरू करदे तो मसला दूसरा होता है ।मनुष्य प्रकृति का स्थान कभी नहीं ले सकता ,क्योंकि उस की सीमा है ,उसमे योग्यता के चयन की क्षमता नहीं है ,वह तो केवल प्रजनन को रोक सकता है ।।                                                                  प्रकृति प्रजनन पर रोक नहीं लगती, हाँ पैदा हुए प्राणियों के हुजूम से श्रेष्ठतम का चुनाव जरूर कर लेती है ।और उसे जीवित रहने की मुहर जरूर लगाती देती है ।   

बुधवार, 19 जुलाई 2023

राजनीति का व्यवसायीकरण

 विश्व की आबादी के हिसाब से भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहलाता है ,बल्कि लोकतंत्र का जनक भी कहलाता है ।लेकिन समय के साथ इस देश ने राजतंत्र  भी देखा और तानाशाही रूपी लोकतंत्र भी देखा ।विदेशी आक्रांताओं का शोषण तथा कदाचार भी देखा ।बहुत संघर्ष के बाद 1947 में इसी देश के गांधी,पटेल,नेहरू,गोखले,मालवीय,जैसे बुद्धिजीवी लोगों  के शांति पूर्ण ,अहिंसक आंदोलन से 170 साल पुराने अंग्रेजी शासन से आजादी दिलाई।तथा नया सविंधान बनाया और शपथ ली कि नए संविधान के अनुसार देश की प्रजा को उत्तम शासन से सहूलियत दी जाएगी ।यद्यपि देश ने कांग्रेस के शासन काल में खूब तरक्की की चाहे वो शिक्षा हो, स्वास्थ हो, विज्ञान हो ,उद्योग हो,लेकिन जनसंखया की व्रद्धि के साथ इसका सामंजस्य नही बैठा सके ।यद्यपि देश की शिक्षा संस्थाओं ने उच्चकोटि के इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक,तैयार किये लेकिन उनको  देश मे खपाने की व्यवस्था नहीं के सके ,जिसके कारण 90% ये ज्ञान विदेशों में चला गया और ये पलायन अभी भी जारी है। इसकी वजह जो मुझे समझ मेआई इसका कारण हमारे राजनेतिक वर्ग में इस ज्ञान के उपयोग का अभाव समझ मे आया ।जो राजनेतिक क्षेत्र सेवा का कहलाता था ,उसका व्यवसायीकरण हो गया ।चुनाव का खर्च बढ़ गया प्रचार का खर्च बढ़ गया ।जहां सरस्वती का वास होता है वहाँ लक्ष्मी का वास नही होता ये सनातनी कहावत यहां चरितार्थ होती है ।बुद्धिजीवियों ने राजनीति से तौबा करली और राजनीति में बाहुबली,पूंजीपतियों का पर्दापण हो गया,उनका उद्देश्य स्वयं को बनाना और स्थापित करना रह गया ।इन्होंने राजनीति को सेवा की जगह व्यवसाय बना लिया ।सायकिल पर चल कर पार्षद फार्च्यूनर में चलने लगा झोपड़ी को महलनुमा मकान बना लिया ।देश मे अमीरों की संख्या बढ़ने लगी ।गरीबो की संख्या बढ़ने लगी ,देश की 10%आबादी के पास देश की 77%संपत्ति पर कब्जा हो गया ।और ये पूंजीपति इस पूंजी को ले कर विदेशों में रहने और निवेश करने लगें।अर्थात के ईस्ट इंडिया  कंपनी बन गई ।आज भारत विश्व की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था कहलाती है फिर भी 80 करोड़ लोगों को फ्री अनाज बांटा जा रहा है ।जबकि इस देश की 21% जनता ही शिक्षित है जो दुनिया के 40वैं पायदान पर  है । प्रति व्यक्ति आय की गणना की जाए तो भारत का दुनिया मे 142वा स्थान है जो अंगोला से भी कम है,जर्मनी,कनाडा की आय हमसे 20गुना यूके की 18गुना फ्रांस की 17 गुना अमरीका की 31 गुना हमारे पड़ोसी चाइना  जिसकी आबादी हमसे ज्यादा है 5 गुना ज्यादा है  इसकी वजह इस देश की राजनैतिक पार्टीयां सिर्फ अपने नेतावों को पोषित  करती हैं और स्वयं को राजगद्दी पर येन केन बैठे रहने के प्रयास में लगी रहती हैं।इसका  इलाज जनता को शिक्षित करना ,शिक्षित बुद्धिजीवी प्रतिनिधियों को उतारना होगा।जनता के चंदे से चुनाव लड़ना स्वयं के खर्च को घटाना ,प्रचार के तरीक़े को बदलना होगा। इसके बाद सत्ता में आने के बाद ज्ञान के पलायन को रोकना होगा ,जनभागीदारी की योजनाओं का जाल बिछाना होगा  देश के ज्ञान का उपयोग देश के उत्पादन में ही करना होगा ,देश मे लोकतंत्र तभी सफल होगा ।अन्यथा ये तथाकथित राजनेतावों के द्वारा शासित राजतन्त्र बन कर रह जायेगा ।

सोमवार, 8 मई 2023

भारत मे लोकतंत्र बनाम चुनावी राजतन्त्र।

 उपरोक्त विषय मे मेरा अपना सोचना है कि भारत मे लोकतांत्रिक प्रणाली इस देश की अपनी पोषित प्रणाली न हो कर एक थोपी हुई प्रणाली है जो कि यूरोप के बहुतायत देशों के द्वारा पोषित की गई है ।और उसे उनके द्वारा शासित देशों पर उनके खुद के स्वार्थ सिद्धि के लिए थोपी गई है ।नहीं तो जैसा मैंने 3 साल कनाडा में रह कर देखा और वहां के चुनावों के क्रियान्वयन को नजदीक से देखा तो पाया कि वहां जनप्रतिनिधियों का सम्मान तो है परन्तु उनको जनता द्वारा इतनी अहमियत नहीं दी जाती ।वहां का जनप्रतिनिधि चाहे वो  सांसद हो या विधायक उसका आवागमन ,रहनसहन आम जनता की तरह ही होता है ।उसे कोई विशेष अधिकार नही होते ,उसका काम जनता को सुविधा पहुंचाने के लिए उपयुक्त कानून बनाने तक ही सीमित रहते हैं ।उसके लिए उन्हें कोई पारितोषिक या तन्ख्वाह नहीं मिलती मीटिंग अटेंड करने का भत्ता भर मिलता है ।उनके रहने की व्यवस्था उनकी खुद की है ,उनके लिए आवासों का आबंटन होता है उसका किराया उन्हें स्वयं वहन करना पड़ता है शासकीय कामो के लिए वाहनों की व्यवस्था शासकीय रहती है,परन्तु स्वंय के उपयोग के लिए शासकीय वाहन वर्जित होते हैं ।।                         अर्थात वहां कानून का राज है न कि विधायिका का।उदाहरण के लिए मेने वहां मोंट्रियल में स्थित गांधीपार्क में गांधीजी की मूर्ति स्थापित करने के लिए आदरणीय श्री शरद यादव से अनुरोध करके तत्कालीन विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज के प्रयासों से जनवरी 2019 में गांधीजी की  आदमकद मूर्ति भिजवाई । जिसे पार्क में स्थापित करने के लिए वहां के कमिश्नर को कनाडा के प्रधानमंत्री श्री ट्रुडो से चुनाव प्रचार के दौरान हुई मुलाकात के समय मदद करने की विनती की तो उनका जवाब था कि वो कमिश्नर के कार्य क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकते ।क्योंकि वे कानून से बन्धे हैं।लिखने का मतलब वहां कानून और स्थापित नियमो का पालन होता है ।वहां कानून सर्वोपरि है न कि जनप्रतिनिधि, कानून और नियम को सर्वोपरि माना जाता  है।व्यवहारिक तौर पर तो यहां भी कानून का राज है लेकिन व्यवहारिकता कुछ अलग है ।।              इसकी जब समीक्षा की तो महसूस किया कि इस देश की जीवन प्रणाली व्यक्ति प्रधान रही है ।त्रेता युग मे रामराज था जहां श्री राम जनता के बीच सर्वमान्य राजा थे उनको मर्यादापुरुषोत्तम की उपाधि से सम्मानित किया गया ।क्योंकि उनका आचरण वैसा था ।दूसरी तरफ द्वापर युग मे श्री कृष्ण पूजित हुए जो मर्यादा तोड़ू कहलाये ।परन्तु धर्म रक्षक के रूप में अवतरित हुए,पापियों, दुराचारियों के लिए विध्वंशक के रूप में अवतरित हुए।अर्थात दोनों युग व्यक्ति पूजक रहे ।इसीप्रकार वर्तमान कलयुग में भी चक्रवर्ती राजावों के रूप में चाहे नन्द वंश हो या मौर्य वंश, मुगलवंश या अंग्रेजी शासन इसमें आखरी का अंग्रेजी शासन के पहले व्यक्ति विशेष ने ही राज किया ।चाहे हर्षवर्धन हो अशोक हो चन्द्रगुप्त हो अकबर और औरंगजेब हो ।शायद इसीलिए वर्तमान प्रणाली में राजनीतिक पार्टियां किसी न किसी परिवार के द्वारा संचालित हो रही हैं या किसी वर्ग विशेस के संगठन के द्वारा ।देश के केंद्र के नेतृत्व के लिए चेहरे को प्रधानता दी जा रही है और अब राज्य स्तर पर भी चेहरे को प्रमुखता दी जा रही है ।इस सब को देख कर मुझे ये एक अनुवांशिक गुण या बीमारी लगती है ।इस देश के या महाद्वीप में जिसमे व्यक्ति पूजक की संख्या ज्यादा है वनस्पति जन प्रतिनिधि के  ।यद्यपि ब्रिटेन जिसने 167 देशों पर राज किया वी चार्ल्स द्वितीय के बाद राजा विहीन हो गया था ,तब राजतन्त्र को चलाने के लिए वहां के पूंजीपतियों के संघठनो ने इस  देश की बागडोर संभाली   जिसमे east india co और bey hudson जेसी पूंजीपति सोच की कंपनियों के प्रतिनिधि यों की सलाह पर लोकतांत्रिक प्रणाली को ईजाद किया ।जिसमें इनका पूंजीवादी हित निहित था ।जिसमे एक राजा के स्थान पर बहुसंख्यक राजावों(जनप्रतिनिधि) को अपनी पूंजी की मदद से चुनवा कर अपना हित साधा जा सके।इसे या तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शासन करने का षड्यंत्र समझलो या सर्वमान्य शासन प्रणाली । कमियां तो हर प्रणाली में मिलेंगी परन्तु उन खामियों का प्रतिशत नापने के मापदंड होना चाहिए जो इस प्रणाली में भी होगा परन्तु व्यवहार में दिखता नही है ।                                                                           फिर भी इस प्रणाली में जिन जिन देशों ने इस के चार स्तम्भों में सबसे मजबूत कानून के स्तंभ का पालन किया उस देश की जनता सुखी है ।क्योंकि कानून सर्वोपरि है और उसका अनुपालन कराने वाले जनप्रतिनिधियो का हस्तक्षेप नगण्य है ,परन्तु जो देश पुरातन राजतन्त्र से पोषित हुवा है, उस देश मे कानून के ऊपर इंसान विशेष प्रधान रहा हो वहां लोकशाही का सफल होना सन्देहास्पद।जो कि वर्तमान में इस देश मे देखा जा रहा है।कानून का भी बंटवारा हो गया व्यक्ति विशेष के लिए अलग और साधारण व्यक्ति के लिए अलग।इसे निष्पक्ष कानून प्रणाली नहीं कह सकते।इन्ही विशेष सुविधाओं की आकांछा रखनेवाले  पूंजीपति, बाहुबली देश की अधिकांश गरीब ,अनपढ़ जनता को लालच ,डर ,आंतक के दम पर चुनाव जीत कर जनप्रतिनिधि का चोला पहन कर लोकतांत्रिक प्रणाली में उल्लेखित सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं ।ओर भोली भाली जनता को जूठे सब्जबाग ,फ्री की रेवड़ी बाँट कर जो उन्ही से टैक्स के रूप में वसूली जा रही है  जनता को निकम्मी बनाया जा रहा है, जिसमे हमारी पुरातन सभ्यता के अंश जैसे स्वाभिमानी, सवाबलम्बन जेसे शब्द सिर्फ शब्दकोश में कैद हो कर रह गए ।

गुरुवार, 26 जनवरी 2023

देश मे नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत

 आज देश मे सत्ता बदलने का समय आ गया है।श्रीमती इंदिरागांधी के समय जो तानाशाही का तरीका अपना कर देश की सत्ता पर काबिज रहने का जो उपाय और प्रयास किये गए थे वही प्रयास वर्तमान सरकार भी कर रही है ।झूठे वादे गरीबो को लुभाने के लिए फ्री अनाज,निजी आवास की रेवड़ी तथा मीडिया की स्वतंत्रता ,न्यायपालिका के अधिकारों में हस्तक्षेप ,कुछ पूंजीपतियों के इशारे पर psu संस्थानों की बिक्री ,सरकारी नॉकरियों में  छटनी सेना की भर्ती में हस्तक्षेप ,सरकारी बैंकों से असुरक्षित कर्ज देने का दबाव ये जाहिर करता है कि इन लुभावने जुमलों के आधार पर येन केन प्रकारेण सत्ता में बने रहो ।समाज मे धर्म विभेद, जाती विभेद हिन्दू मुस्लिम में माइक्रो स्तर पर झगड़े ,मंदिर मस्जिद का विवाद ,इस प्रकार निम्न स्तर की सोच का क्रियान्वयन देश की पुरातन गंगा जमनी तहजीब को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।जिसके कारण देश आर्थिक रूप से कमजोर हो रहा है। देश पर जीडीपी का 93प्रतिशत कर्ज हो गया जो 30 था ।सड़को के निर्माण की लागत टोलटैक्स से वसूली जा रही है जो रोड टैक्स के अलावा है जिससे मालभाड़े में बढ़ोतरी हो रही है,पेट्रोलियम प्रोडक्ट पर भारी exiseduty लगाई जा रही है ।राज्यों के हिस्से में भेदभाव किया जा रहा है ,ये  इस सरकार के आर्थिक मैनेजमेंट की कमियों को दर्शाता है ,         इन सब कमियों और नीतियों को देखते हुए इस देश की युवा शिक्षित पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है।इसलिए अब इस देश को एक नए नेतृत्व की जरुरत है।इन तमाम कमियों के लिए देश की तमाम राजनैतिक पार्टिया बराबर की दोषी हैं ।इस सरकार ने जो शासन करने की जो दिशा दी है ,भविष्य में दूसरी पार्टियां इसका अनुशरण नहीं करेंगी इसकी क्या गारंटी  है ।इन तमाम पार्टियों को इसका ज्ञान हो गया है।इस देश मे बहुसंख्यक वोटर अशिक्षित, और गरीब है उसे वोट की ताकत का ज्ञान नहीं है ।वो पूरे साल तकलीफ में रहता है,और वोटिंग के दिन बिक जाता है  उसे उस दिन का खाने का खर्च पार्टियां उठा लेती हैं ।उसे अपने अनिश्चित भविष्य के साथ जीने की आदत हो गई है।और जो सम्पन्न वर्ग है उसे कैसे सुविधा लेनी है उसकी कला वो सीख गया है।।                                              इससे जाहिर होता है कि तमाम राजनैतिक पार्टियां  कुछ दबंगों, पूंजीपतियों, और असामाजिक तत्वों का काकस बन गई हैं जो मिलकर सरकारी संसाधनों का और धन का उपभोग कर रहीं हैं।इसमें नॉकरशाह उनके साधन और धन उपार्जन साध्य बन गया ।इसका इलाज एक ही है जो  देश की युवा पीढ़ी सड़क पर उतरे और व्यक्तियों का चुनाव करे जिसकी छवि निर्दाग ,निष्कलंक शिक्षित हो  जो किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा न हो जिसे क्षेत्र विशेष में विशिष्टता प्राप्त हो उसे चुन कर लोकसभा ,विधानसभा में भेजे ।तभी इस देश को नई दिशा मिल सकेगी ।उसको जिताने के लिए जनता के बीच मे जाना पड़ेगा जैसे 1974 में शरद यादव को जन प्रतिनुधि के  रूप में भेजा था                                                                                       जहां तक चुनाव फण्ड की व्यवस्था का सवाल है एक रुपया एक वोट की पद्धति अपनानी पड़ेगी या जिले स्तर पर कॉलेज,स्कूल यूनिवर्सिटी स्तर पर छात्रों की कमेटी बनानी पड़ेगी जो जनता से सोशल मीडिया के माध्यम से चंदा इकट्ठा करके इसकी व्यवस्था करनी पड़ेगी ।काम कठिन है पर असम्भव नहीं है ।

शनिवार, 27 अगस्त 2022

तीसरे विश्व युद्ध की और यूरोप

 दुनियां की दो बड़ी शक्तियां अपने आप को  सुपर पावर बताने की होड़ में दुनिया को युद्ध जैसी विभीषका में झोंकने की और प्रयास रत्त हैं ।कोरोना की महामारी से उबर नहीं पाये थे और अब रूस यूक्रेन युद्ध पिछले 6 माह से चल रहा है जिसमे यूक्रेन को मोहरा बना कर अमरीका और रूस अपने हथियारों के प्रदर्शन की होड़ में लगे हैं ।दूसरी तरफ चाइना ,ताइवान को कब्जाने तयारी में लगा है ।ये सारी शक्तियां उस देश पर हमला नहीं करती जो परमाणु सम्पन्न है ।ये सब सोची समझी रन नीति के तहत ये चाल चलते हैं इससे निरीह जनता गरीबी और असमंजस की जिंदगी जीने को मजबूर हॉती। है इस प्रकार के संकट के हल के लिए UNO  निरीह बना तमाशा देख रहा है ये संस्था भी इन सुपर पावर देशों के प्रभाव में कोई निर्णय नही लेता तब इसका औचित्य क्या है ।मानवता और सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार देने वाला समाज मूक दर्शज बना देख रहा है ।ऊपर से प्राकृतिक आपदा से दुनिया के संपन्न देश ग्रषित है इंसान का जीवन आर्थिक रुप से  टूट गया है उसकी भरपाई के लायक सरकारों के पास साधन नही बचे ।इसे प्रकृति का आक्रोश या प्रलय नहीं तो क्या कहेंगे ।विश्व बिरदारी के पुराधावों को एक आपातकाल मीटिंग बुला कर विश्व शांति का प्रयास करना चाहिए।दुनिया के पूंजीपतियों को विचार करना चाहिये जब मानवता ही नही बचेगी तो इस संचित  पूंजी का क्या उपयोग ।वक्त का तगादा है विश्व की महा शक्तियॉ के बीच सुलह कराई जाए और दोषी राष्ट्र पर बंदीश लगाई जाए या उसे UNO ,WTO से बाहर किया जाए ।तथा उसके प्राक्रतिक संसाधनों  के दोहन पर प्रतिबंध लगा कर मानव हित मे अंतरराष्ट्रीय संस्था के नेतृव में उत्पादन और वितरण की व्यवस्था की जाए अन्यथा विश्व एक विश्व व्यापी संकट के चक्र में फंसता जाएगा  

सोमवार, 18 जुलाई 2022

एक और क्रांति की ज़रूरत

 इस देश में मुख्यतः तीन क्रांतियां हुई है , जिनका आधार जनता के बीच दबा हुआ गुस्सा था।  गुस्सा उनके साथ हो रहे अत्याचार जो कुछ दीखता था और कुछ छुपा हुआ था।  विद्रोह छुपे हुए अत्याचार के कारण किसी एक व्यक्ति के अनुभव एवम उसकी सहनशक्ति की सीमा को लांघने के कारण हुआ।  पहेली क्रांति १८५७ में सापेक्ष अत्याचार की अपेक्छा एक बोने से अत्याचार [बन्दूक की गोली में गाय के मांस का उपयोग] के कारण प्रशासन से विद्रोह के रूप में मंगल पांडेय ने शुरू की थी।  जो देश के कोने-२ में फैल गयी , यदि यह व्यवस्थित तरीके से संचालित होती तो देश १८५७ में ही आज़ाद हो जाता।  परन्तु यह शासन की भागेदारी से वंचित और उपेक्छित वर्ग के द्वारा संचालित थी और उपेक्षित शासको का स्वार्थ निहित था ,जिसके कारण यह क्रान्ति सफल नहीं हो पायी। 

दूसरी क्रान्ति १९४२ में गांधीजी के कारण शुरू हुई , पचासी साल के लम्बे अंतराल के बाद साऊथ अफ्रीका में उनके साथ अंगेजो द्वारा किये गए अपमान से उत्पन्न गुस्से के कारण बदले की भावना से इस क्रान्ति का उदय हुआ।   किसी हद्द तक यह क्रांति सफलतम की श्रेणी में गिनी जाएगी।  क्योकि इसमें निजी स्वार्थ निहित नहीं था , यह व्यवस्थित भी थी क्योकि जन समुदाय एक व्यक्ति के पीछे था , और आक्रोश का प्रदर्शन कुछ अन्य हाथो में था।  इनके मिलेजुले प्रभाव से क्रान्ति सफल रही, परन्तु निष्कंटक प्रशासन और भौतिक सुख ने इस प्रतिवर्तन को  तानाशाही प्रवर्ति का रुप दे दीया। सामूहिक नेतृत्व एकल में केंद्रित हो गया , जो धीरे-२ जनता से संवादहीनता में परिवर्तित होता गया और तानाशाही की और अग्रसर होने लगा , जिसका परिणाम ३२ साल बाद १९७४ में श्री जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रान्ति के रूप में प्रकट हुई। यह तीसरी क्रांति हुई।   

चूकि यह क्रान्ति एकल तानाशाही के विरुद्ध एक व्यक्ति द्वारा लड़ी गयी थी तथा इसमें दबंगो और छात्रों का साथ लिया  गया था , और सदियों से उपेक्छित वर्ग की भागेदारी ज्यादा थी , तथा परिवर्तन  के बाद सत्ता भी इन्ही के हाथो में आनी थी , इस लिए इस उपेक्छित वर्ग के सत्ता में आने के बाद जयप्रकाश जी द्वारा अपेक्छित क्रांति उनके जाने के बाद नेतृत्वहीन हो गयी , इस कारण जनहित, "समाजवाद" के नाम से सत्ता हासिल करके कुछ राज्यों में परिवारवाद में परिवर्तित हो गयी। 

अब चौथी क्रांति की जरुरत है।  समीक्षा की जाए तो दूसरी क्रान्ति  अधिक समय तक टिकाऊ रही क्योकि इसमें उद्देश्य शुद्ध एवम व्यापक था।  पहेली क्रांति ३ साल में बुझ गयी , दूसरी क्रांति ३२ साल तक जिन्दा रही , तीसरी ७ साल में भुजने लगी।  अब चौथी उम्मीद करता हूँ की युवाओं द्वारा आएगी जो HIGH-TECH होनी चाहिए।  यह व्यवस्था परिवर्तन की होनी चाहिए,  क्योकि शिक्षा का स्तर बढ़ा है , अपेक्षाएं बढ़ी है , सहनशक्ति शिक्षित वर्ग में कम होती है , अन्याय का प्रतिकार जल्द उपजता है , संभव है जल्द ही SILENT क्रांति होनी चाहिए जो BALLOT से ही आएगी।  इसमें दबंगो और तथाकथित "परिवारों" से निजाद मिलेगी। 

शुक्रवार, 10 जून 2022

लोकतंत्र बनाम हिन्दू राजशाही

 जिस देश को 700 साल मुगलों और  200 साल अंग्रजो की गुलामी से मुक्त कराने में महात्मा गांधी,नेहरू,सरदार पटेल ,सुभाषचंद्र बोस,और भगतसिंग जैसे सेनानियों के अथक प्रयासो से  खण्ड खण्ड भारत को अहिंसा के हथियार से आधुनिक हथियारों से लैस लुटेरों के चंगुल से बिना खून बहाये आजाद कराया ,और नेहरू के प्रयासों से हिन्दू राजशाही के आदी देश को यूरोप की आधुनिक लोकतांत्रिक प्रणाली से शासन करने की पध्दति को अपना कर विश्वपटल पर देश की उपस्थिति का जो प्रयास किया उसे आज के सत्ताधीश ध्वस्त करने का प्रयास कर रहे हैं ।।                                                          राजनीति जो सेवा का  क्षेत्र कहलाता है वो व्यापार होता जा रहा है ,जो एक बार चुन कर सत्ता का स्वाद चख लेता है उसकी ये विरासत बन जाती है ,उसका पूरा परिवार इस सत्ता सुख  को भोगने के लिए किसी भी प्रकार के आचरण करने में झिझकता नही है ।एक किस्म की पुरानी राजशाही की छाप राजनेतावों में परिलिक्षित होने लगी है ।विरोध के स्वर को दबाने के लिए सुचारू प्रशासन के लिए निमित संस्थावों  का उपयोग किया जाने लगा है ।देश की 48%गरीब और निरीह जनता को फ्री राशन बाँट कर एक नया लाभार्थी वर्ग बना दिया गया है जो इनको सत्ता में बिठाने का स्थायी जरिया बन गया है ।।    देश के बेरोजगार नवजवानों को रोजगार उपलब्धता की जगह मंदिर ,मस्ज़िद,हिन्दू,मुसलमान के झगड़ो में उलझा दिया है । चूंकि इनके पास कोई विज़न नहीं है  कोई योजना नहीं  देश को गरीबी ,बेरोजगारी से निजाद दिलाने के लिए सिर्फ स्वंय के सत्ता सुख के अलावा ,देश  की हालत श्रीलंका और बेनेजुवेला जैसी होती जा रही है।और तो ओर देश की सेना की ,रेलवे की भर्ती पिछले दो साल से रुकी है जवान बच्चों की उम्र निकलती जा रही है ,चाइना और रूस यूक्रेन जैसे देशों में सेना में भर्ती के लिए जवान मिल नहीं रहे इन्हें आफ़ग़ानिस्तान  जैसे देशों से जवानों को लेना पड़ रहा है ।और हमारे यहां भर्ती के लिए होड़ लगी है ।नेहरू ने जो उधोग लोगो को रोजगार देने के लिए सरकारी क्षेत्र में लगए थे जो सिर्फ रोजगार देने के लिए न कि मुनाफा कमाने के लिए उन्हें बेचा जा रहा है ।नवरत्नों को कोयले के भाव मे अपने करीबी उधोगपतियों को बेचा जा रहा है ,जो विरोध करता है उस पर ED और CBI का छापा डलवाया जा रहा है ।।        इसका एक मात्र उद्देश्य OBC ST/SC  का आरक्षण खत्म करना है किसी भी सरकार को तीन (स) शिक्षा,सुरक्षा, स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च करना चाहिए ये सरकार इन्ही क्षेत्रो में उदासीन है इसमें दो  क्षेत्रों  का बजट विश्व के किसी भी विकाशशील देशों से बहुत कम है ।जो सरकार अपने देश के नागरिकों को अच्छी शिक्षा अच्छा  सवास्थ्य नही दे सकती उसे सत्ता में रहने का  कोई अधिकार  नहीं ।।            जिस देश मे चार  चार मौसम,  उपजाऊ कृषि भूमि अथाह खनिज भंडार अनगिनत नदियां हों उस देश मे गरीबी देख कर देश के सत्ताधारियों की काबलियत पर सवाल उठना लाजमी है ।शिक्षा ओर स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट घटाया जा रहा है प्राइवेट सेक्टर को बढ़ाया जा रहा है इस सेक्टर पर राजनेतावों और नॉकरशाहों का आधिपत्य है। महंगी शिक्षा और महंगा इलाज गरीबों के लिए अभिशाप बन गया  है।।                                                                                     खनिज संपदा में विकीवीडिया के सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक इस देश मे 2012 के आंकलन के अनुसार    अभ्र्क़ का विश्व  का सबसे बड़ा भंडार है ,आयरन और का तीसरा boxide का पांचवां और थोरियम का सबसे बड़ा भंडार है ।इन खनिजो का दोहन करके ओर परिष्कृत करके विश्व बाजार में बेच कर देश मे बहने वाली नदियों को जोड़ कर नहरों का जाल  बिछा कर ओर विधुत उत्पादन किया जाए तो कारखानों को प्रचुर मात्रा में बिजली और कृषि को जल की सुगम उपलब्धता से देश के युवाओं को रोजगार और किसान को खेती से भरपूर रोजगार प्राप्त हो सकता है ।परंतु दुर्भाग्य से जमीनों पर राजनीतिक सरंक्षण प्राप्त भूमाफियों का कब्जा है ,शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी राजनेतावों का कब्जा है खनिज पर बड़े बड़े उधोगपतियों का जो किसी न किसी राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए उनका कब्जा है अर्थात लोकतंत्र पर राजशाही काबिज हो गई आजादी के पहले की 630 रियासतें फिर से दूसरे रूप में जिंदा हो गई ।अधिकांश सांसद, विधायक ,बड़े नॉकरशाह पूरी व्यवस्था पर काबिज हो गए महसूस होता है, देश के DNA में ही राजशाही है।लोकतांत्रिक व्यवस्था के नाम पर देश की जनता के साथ छलावा हो रहा है ।ये लोकतांत्रिक प्रणाली उन्ही देशो में सफल हुई है जहां शिक्षा का स्तर शत प्रतिशत है।अशिक्षित देशों में लोकतंत्र शोषण का माध्यम बन गया है ।बिना शिक्षा और स्वास्थ पर खर्च को बढ़ाये लोकतंत्री प्रणाली सफल  होगी इसमे संसय है ।एक इंटरव्यू में ब्लिट्ज के संपादक करंजिया से कहा था अगर इंग्लैंड को देखे तो वह औपचारिक रूप से चर्च ऑफ इंग्लैंड से एफफिलिअटेड ,लेकिन वहां का समाज लोकतांत्रिक हैं ।दूसरी तरफ हम संवैधानिक रूप से लोकतांत्रिक हैं लेकिन हमारा समाज लोकतांत्रिक नहीं है ।हमारे देश की राजशाही व्यवस्था हिन्दू है, इसलिए हमें सक्रिय व सचेत रूप से समाज को लोकतांत्रिक बनाने की कोशिश करनी होगी ।इसीलिए राजमाता सिंधिया ने कहा था कि हमारी तपों भूमि  लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुकूल नहीं थी।इसके बावजुद नेहरूजी ने इस देश मे लोकतांत्रिक व्यवस्था का पौधा लगाया ।